होम नेशनल न्यूज मध्य प्रदेश लोकल न्यूज टेक्नोलॉजी बिजनेस मनोरंजन वीडियो न्यूज अन्य
Latest news

---Advertisement---

मोहर्रम क्यों मनाया जाता है?जानिए कहानी अन्याय के विरुद्ध आवाज की 

By: विकाश विश्वकर्मा

On: Sunday, July 6, 2025 10:05 PM

Muharram: Remembering the sacrifice of Imam Hussain in Karbala and the message of truth, justice, and standing against oppression
Google News
Follow Us
---Advertisement---

जब भी मोहर्रम का नाम लिया जाता है, तो इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसी घटना की याद ताजा हो जाती है, जिसने इंसानियत, बलिदान और सच्चाई की मिसाल कायम की। मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, लेकिन यह सिर्फ एक नए साल की शुरुआत नहीं, बल्कि शहादत और सब्र का महीना है। हर साल, दुनिया भर के मुसलमान इस महीने को बेहद अदब और गम के साथ मनाते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि मोहर्रम क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे की वजह क्या है?तो आइए आपको बताते हैं ईस बेहद पवित्र पर्व के बारे में|

करबला की जंग अन्याय के खिलाफ आवाज

मोहर्रम का सबसे बड़ा महत्व दसवें दिन यानी ‘आशूरा’ को है। इसी दिन 680 ईस्वी में करबला (वर्तमान इराक) के मैदान में पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों ने अन्याय के खिलाफ अपनी जान की कुर्बानी दी थी। उस समय के शासक यजीद ने सत्ता के लिए अत्याचार और अन्याय की हदें पार कर दी थीं। इमाम हुसैन ने अन्याय के आगे झुकने से इनकार कर दिया और अपने परिवार, बच्चों और साथियों के साथ भूखे-प्यासे रहकर भी सच्चाई और इंसाफ की राह चुनी। उनकी शहादत आज भी इंसानियत के लिए एक आदर्श है।

Vivo phone- दमदार कैमरा, बैटरी और फ्लैगशिप फीचर्स के साथ बाजार में तैयार!

शहादत का संदेश सब्र और इंसाफ

करबला की घटना सिर्फ एक युद्ध नहीं थी, बल्कि यह इंसानियत, सब्र, सच्चाई और न्याय की लड़ाई थी। इमाम हुसैन ने साबित किया कि सच्चाई के लिए कितनी भी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े, इंसाफ और हक की राह नहीं छोड़नी चाहिए। मोहर्रम हमें यह सिखाता है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना और सच्चाई के लिए डटे रहना ही असली इंसानियत है। यही वजह है कि मोहर्रम के मौके पर लोग इमाम हुसैन और उनके साथियों की याद में मातम मनाते हैं, ताजिया निकालते हैं और उनकी कुर्बानी को याद करते हैं।

लड़के ने अपने दोस्त का कराया लिंग परिवर्तन फिर किया शादी से इंकार पुलिस हैरान 

मातम और ताजिया श्रद्धा का अनूठा रूप

मोहर्रम के दौरान शिया मुसलमान खास तौर पर मातम करते हैं, यानी छाती पीटकर और आंसू बहाकर इमाम हुसैन की शहादत का गम मनाते हैं। ताजिया निकालना भी इसी गम और श्रद्धा का प्रतीक है। ताजिया दरअसल इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीकात्मक रूप होता है, जिसे जुलूस के रूप में निकाला जाता है। यह मातम और ताजिया सिर्फ गम नहीं, बल्कि इंसाफ, सब्र और इंसानियत की शिक्षा भी देता है। बहुत से लोग इस दिन रोजा रखते हैं और दुआ करते हैं कि उन्हें भी सच्चाई और इंसाफ की राह पर चलने की ताकत मिले।

मोहर्रम सभी के लिए एक संदेश

मोहर्रम सिर्फ मुसलमानों का पर्व नहीं, बल्कि यह हर उस इंसान के लिए एक संदेश है जो सच्चाई, इंसाफ और इंसानियत में यकीन रखता है। करबला की घटना बताती है कि सत्ता, डर या लालच के आगे झुकना नहीं चाहिए। इमाम हुसैन की कुर्बानी हर धर्म, जाति और वर्ग के लोगों को यह प्रेरणा देती है कि जब भी अन्याय हो, तो उसके खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है। यही वजह है कि मोहर्रम की याद सिर्फ मजहबी नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय भी है।

आज के दौर में मोहर्रम की प्रासंगिकता

आज के समय में, जब समाज में कई तरह की चुनौतियाँ और अन्याय देखने को मिलते हैं, करबला की सीख और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। मोहर्रम हमें याद दिलाता है कि सच्चाई और इंसाफ के लिए डटे रहना चाहिए, चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों। इमाम हुसैन की शहादत आज भी लोगों को प्रेरित करती है कि वे अपने अधिकारों और सच्चाई के लिए आवाज उठाएं, और दूसरों के साथ न्याय करें।

मोहर्रम का सामाजिक समावेश

भारत जैसे विविधता भरे देश में मोहर्रम का पर्व सामाजिक समावेश और एकता का भी प्रतीक है। कई जगहों पर हिंदू, सिख और अन्य धर्मों के लोग भी मोहर्रम के जुलूस में भाग लेते हैं, ताजिया उठाते हैं और इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करते हैं। यह पर्व इंसानियत की उस भावना को मजबूत करता है, जिसमें धर्म, जाति और भाषा की दीवारें बेमानी हो जाती हैं।

बच्चों और युवाओं के लिए सीख

मोहर्रम की कहानी बच्चों और युवाओं के लिए भी बेहद प्रेरक है। यह उन्हें सिखाती है कि जीवन में कभी भी झूठ, अन्याय या लालच के आगे झुकना नहीं चाहिए। सच्चाई और इंसाफ की राह पर चलना ही असली बहादुरी है। करबला की सीख आज के युवाओं को मजबूत और संवेदनशील बनाती है।

मोहर्रम एक नई सोच की ओर

हर साल मोहर्रम का महीना आते ही करबला की यादें ताजा हो जाती हैं। यह पर्व हमें बार-बार यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम आज भी सच्चाई और इंसाफ के लिए उतने ही प्रतिबद्ध हैं, जितने इमाम हुसैन थे? क्या हम समाज में फैले अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए तैयार हैं? मोहर्रम का संदेश यही है सच्चाई, सब्र और इंसानियत की राह कभी न छोड़ें।

विकाश विश्वकर्मा

नमस्कार! मैं विकाश विश्वकर्मा हूँ, एक फ्रीलांस लेखक और ब्लॉगर। मेरी रुचि विभिन्न विषयों पर लिखने में है, जैसे कि प्रौद्योगिकी, यात्रा, और जीवनशैली। मैं अपने पाठकों को आकर्षक और जानकारीपूर्ण सामग्री प्रदान करने का प्रयास करता हूँ। मेरे लेखन में अनुभव और ज्ञान का मिश्रण होता है, जो पाठकों को नई दृष्टि और विचार प्रदान करता है। मुझे उम्मीद है कि मेरी सामग्री आपके लिए उपयोगी और रोचक होगी।
For Feedback - Feedback@shopingwoping.com.com

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

Leave a Comment