अजमेर के न्यायिक गलियारों में इन दिनों एक नाम चर्चा में है विकास दिव्यकीर्ति। दृष्टि आईएएस कोचिंग के संस्थापक और सोशल मीडिया पर लाखों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत दिव्यकीर्ति, एक बार फिर विवादों के केंद्र में हैं। वजह है उनका हालिया वायरल वीडियो “आईएएस वर्सेस जज”, जिसमें उन्होंने आईएएस और जज की शक्तियों की तुलना करते हुए कुछ ऐसी टिप्पणियां कीं, जिन्हें देशभर के कई न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ता आपत्तिजनक मान रहे हैं। यह वीडियो देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और बहस का विषय बन गया।
मानहानि का मामला
इस विवाद ने नया मोड़ तब लिया, जब अजमेर जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व अधिवक्ता अशोक सिंह रावत ने बताया कि कमलेश मंडोलिया नामक व्यक्ति ने अजमेर के न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट संख्या 2 में दिव्यकीर्ति के खिलाफ मानहानि का परिवाद दायर किया। आरोप है कि वीडियो में न्यायिक अधिकारियों और अधिवक्ताओं के खिलाफ अपमानजनक व व्यंग्यात्मक टिप्पणी की गई है, जिससे न्यायिक समुदाय में गहरी नाराजगी है। कोर्ट के पीठासीन अधिकारी मनमोहन चंदेल ने इस मामले में दिव्यकीर्ति को 22 जुलाई को सशरीर पेश होने का आदेश दिया है।
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वीडियो की सामग्री
अधिवक्ता अशोक सिंह रावत के मुताबिक, विवादित वीडियो में दिव्यकीर्ति ने “आईएएस बनाम जज” विषय पर चर्चा करते हुए दोनों पदों की ताकत, समाज में उनकी छवि और प्रभाव की तुलना की। आरोप है कि इस दौरान उन्होंने जजों और वकीलों के बारे में कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया, जिन्हें अपमानजनक और व्यंग्यात्मक माना गया। इन टिप्पणियों से न केवल न्यायिक अधिकारियों, बल्कि अधिवक्ताओं के बीच भी असंतोष की लहर दौड़ गई। कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सार्वजनिक मंच पर इस तरह की टिप्पणियाँ न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती हैं।
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कोर्ट में पेश हुए सबूत
मामले की सुनवाई के दौरान परिवादी पक्ष ने वीडियो से संबंधित साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत किए। दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी है, जिसके बाद कोर्ट ने दिव्यकीर्ति को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश जारी किया। यह आदेश न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए उठाया गया कदम माना जा रहा है। कोर्ट के इस आदेश के बाद कानूनी हलकों में चर्चा तेज हो गई है कि सोशल मीडिया पर सार्वजनिक हस्तियों की जिम्मेदारी और अभिव्यक्ति की सीमा क्या होनी चाहिए।
सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
विकास दिव्यकीर्ति का यह मामला केवल एक व्यक्ति या एक वीडियो तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सोशल मीडिया युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी मर्यादा पर भी सवाल खड़े करता है। आज जब हर व्यक्ति अपने विचारों को लाखों लोगों तक पहुंचा सकता है, ऐसे में सार्वजनिक मंच पर की गई हर टिप्पणी की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। न्यायपालिका जैसी संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है, और इसी संतुलन को लेकर समाज में बहस छिड़ी है।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानून के जानकारों का मानना है कि भारतीय संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और दूसरों की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। न्यायपालिका की आलोचना करना या उस पर सवाल उठाना कानूनन गलत नहीं है, लेकिन यदि कोई टिप्पणी मानहानि की श्रेणी में आती है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई संभव है।
न्यायपालिका की गरिमा
यह मामला केवल एक व्यक्ति की मानहानि या एक वीडियो तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की न्याय व्यवस्था की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता से भी जुड़ा है। न्यायिक अधिकारियों और अधिवक्ताओं की छवि पर सार्वजनिक मंच से की गई टिप्पणियाँ समाज में न्यायपालिका के प्रति विश्वास को प्रभावित कर सकती हैं। यही वजह है कि कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और दिव्यकीर्ति को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया।