छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के परिवार पर आई संकट की घड़ी ने राज्य की सियासत को गरमा दिया है। शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उनके बेटे चैतन्य बघेल को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया। यह हिरासत एक बड़े शराब घोटाले की जांच के तहत सामने आई है, जिसमें राज्य के कई व्यापारियों, अफसरों और राजनीतिक चेहरे शामिल बताए जा रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री का बयान और आरोप
ईडी की इस कार्रवाई के तुरन्त बाद भूपेश बघेल ने अपने बयान में कहा, “मेरे बेटे का सौभाग्य है कि मोदी और शाह उसके खिलाफ हैं।” उन्होंने आरोप लगाया कि यह कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है और विधानसभा में कांग्रेस की ओर से अवैध पेड़ कटाई तथा औद्योगिक परियोजनाओं का मुद्दा उठाए जाने के जवाबस्वरूप हुई है। बघेल का कहना है कि केंद्र सरकार की एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं के परिवारों को दबाव में लेने के लिए किया जा रहा है।
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विधानसभा में अवैध कटाई का मुद्दा
इसमें सबसे रोचक तथ्य यह है कि जिस दिन ईडी ने छापा मारा, उसी दिन विधानसभा सत्र के अंतिम दिन कांग्रेस ने तमनार क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई और उसमें बड़े कॉरपोरेट की भूमिका पर सवाल उठाने की योजना बनाई थी। कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार भी किया और ईडी की कार्रवाई को आवाज दबाने की साजिश करार दिया।
मनी लॉन्ड्रिंग और शराब घोटाले की जांच
ईडी की कार्रवाई में आरोप है कि राज्य के शराब कारोबार में बोगस कंपनियों के माध्यम से अवैध लेनदेन और धनशोधन किया गया। सूत्रों के अनुसार, चैतन्य बघेल पर आरोप है कि उन्होंने शेल कंपनियों के जरिये करोड़ों रुपये की राशि इधर-उधर की है। जांच एजेंसी बघेल परिवार के अलावा, अफसरों व कारोबारियों पर भी शिकंजा कस रही है।
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राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और समर्थन
भूपेश बघेल ने अपने पुत्र के बचाव में कहा कि चैतन्य न तो राजनीति में हैं और न ही उनके किसी सरकारी पद पर है, फिर भी दबाव बनाने के लिए उनके परिवार को निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस ने इस कार्रवाई के विरोध में कई जगह प्रदर्शन किए। दिल्ली पहुंचकर भूपेश बघेल ने कांग्रेस आलाकमान को परिस्थिति से अवगत कराया और समर्थन की अपील की।
विपक्ष और पर्यावरण के मुद्दे पर घमासान
इस घटना पर विपक्ष का कहना है कि भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में ईडी पूरे देश में एक-सा व्यवहार कर रही है। हालांकि कांग्रेस और राज्य के कई सामाजिक संगठनों का तर्क है कि केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ की आवाज और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को दबाने के लिए सख्त जांच एजेंसियों का प्रयोग कर रही है।