मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की डबल बेंच ने हाल ही में मध्यप्रदेश हाउसिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड (MPHIDB) द्वारा हुकमचंद मिल परिसर में उग आई झाड़ियों, उखड़े हुए पेड़ों और लकड़ी के टुकड़ों को काटने और हटाने के लिए जारी ई-निविदा पर स्पष्ट टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि MPHIDB की इस निविदा में किसी भी तरह के पेड़ काटने का उल्लेख नहीं है। यह निर्णय उन निवेदकों की याचिका पर आया है जो प्राकृतिक रूप से उग आए पेड़ों को संरक्षित करने की मांग कर रहे थे।
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MPHIDB की जमीन और विकास योजना
MPHIDB ने हुकमचंद मिल की लगभग 42 एकड़ जमीन खरीदी है, जिसके लिए उसने आधिकारिक लिक्विडेटर के पास ₹421 करोड़ जमा किए थे। इस रकम का एक बड़ा हिस्सा मिल के कर्जदारों और पूर्व कर्मचारियों में बांटा जा चुका है। बोर्ड ने इस जमीन का 60% भाग व्यावसायिक और 40% आवासीय विकास के लिए सुरक्षित रखा है। निवेशकों ने खास तौर पर कहा है कि बिना झाड़ियों और उग आए पेड़ों को हटाए बिना निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जा सकता।
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पर्यावरण संरक्षण और ‘‘सिटी फोरेस्ट’’ का विषय
कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय वन अधिनियम के तहत ‘‘सिटी फोरेस्ट’’ जैसी कोई अवधारणा मान्यता प्राप्त नहीं है। याचिकाकर्ताओं द्वारा यह दावा किया गया था कि हुकमचंद मिल की यह खाली पड़ी जमीन प्राकृतिक रूप से उग आए पेड़ों से एक वन क्षेत्र जैसी बन गई है और इसे संरक्षण दिया जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि यह भूमि सरकारी वन परिसर नहीं है और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर किसी भी तरह के विकास को रोकना उचित नहीं है।
 
 
 







