Supreme Court cancels three year legal practice for MP civil judge– सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया जिसमें सिविल जज के पदों के लिए तीन साल की लीगल प्रैक्टिस को अनिवार्य कर दिया गया था। जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की संयुक्त पीठ ने यह फैसला सुनाया। इस फैसले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा स्वयं जारी किए गए आदेश को चुनौती देने वाली अपील को मंजूरी दी गई, जिससे अब इस नियम को वापस ले लिया गया है।
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तीन साल की प्रैक्टिस की अनिवार्यता का विवाद
मध्य प्रदेश ज्यूडिशियल सर्विसेज रूल्स, 1994 में 23 जून 2023 को संशोधन किया गया था जिसके तहत सिविल जज के परीक्षा में भाग लेने के लिए तीन साल का कानूनी अभ्यास जरूरी कर दिया गया था। इस नियम का मकसद उम्मीदवारों को बेहतर योग्यता देना बताया गया। हालांकि, दो असफल अभ्यर्थियों ने इस नियम को लेकर अपील दायर की, जिसमें उन्होंने कहा कि यह नियम न्यायोचित नहीं और उनके दावों को चुनौती देता है। उच्च न्यायालय ने संशोधित नियमों को बनाए रखा लेकिन साथ ही अभ्यर्थियों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी क्योंकि कई उम्मीदवार इस नई योग्यता को पूरा नहीं कर पा रहे थे।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश और उसका प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल भी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगाई थी जिसने भर्ती प्रक्रिया को अटके रहने दिया था। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले में उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिससे बिना तीन साल की प्रैक्टिस के अभ्यर्थी अब भर्ती प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि दोबारा परीक्षा लेना “असंवैधानिक और व्यावहारिक रूप से असंभव” होगा और इससे Litigation की वृद्धि होगी। इसलिए, इस फैसले से सिविल जज की भर्ती प्रक्रिया सामान्य तरीके से आगे बढ़ेगी।
 
 
 







