ओडिशा के एक छोटे से कस्बे में एक महिला द्वारा ससुराल छोड़ने और कथित रूप से नए साथी के साथ रहने के फैसले ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी है। महिला करीब एक साल पहले अपने पति का घर छोड़कर प्रशांत नामक युवक के साथ रहने लगी थी। इस कदम के बाद उसका अपने पहले पति और ससुराल वालों से विवाद बढ़ गया। महिला का कहना है कि उसके पति द्वारा लगातार मारपीट और प्रताड़ना की वजह से उसने यह कठोर निर्णय लिया। उसने आरोप लगाया कि वह महीनों तक अत्याचार सहती रही, लेकिन जब हालात असहनीय हो गए तो उसे घर छोड़ना पड़ा।
Odisha news-घरेलू हिंसा के आरोप और परिवार में बढ़ता तनाव
महिला का दावा है कि उसके पति ने उसके साथ शारीरिक और मानसिक हिंसा की, जिसके चलते वह मानसिक रूप से टूट गई थी। ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि महिलाएं अपने मायके या किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर शरण लेती हैं। हाल ही में कई न्यायिक फैसलों में भी यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी महिला को अपने ससुराल में खतरा महसूस होता है या उसके साथ दुर्व्यवहार होता है, तो उसे जबरन ससुराल में नहीं रखा जा सकता। न्यायालयों ने यह भी कहा है कि पत्नी कोई संपत्ति या बंधुआ मजदूर नहीं है, और उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध ससुराल में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
भूत उतारने के नाम पर ओझा ने महिला का किया मर्डर अमानवीय अत्याचारों की सीमा पार
समाज में बढ़ती पारिवारिक कलह और कानूनी पहलू
देशभर में ऐसे मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जहां महिलाएं ससुराल में प्रताड़ना या असहमति के चलते घर छोड़ देती हैं। कई बार यह विवाद तलाक तक पहुंच जाता है। कुछ मामलों में महिलाएं अपने पति से अलग रहकर स्वतंत्र जीवन जीने की मांग करती हैं, जबकि कई बार वे अपने माता-पिता के साथ रहना पसंद करती हैं। कानूनी रूप से, यदि महिला के साथ हिंसा या प्रताड़ना के पर्याप्त प्रमाण हैं, तो वह पुलिस और अदालत की सहायता ले सकती है। साथ ही, पति या उसके परिवार द्वारा महिला को जबरन ससुराल लाने के लिए दबाव डालना भी कानूनन गलत माना जाता है।
सामाजिक और पारिवारिक दबाव के बीच महिला की स्थिति
ऐसे मामलों में महिलाओं पर सामाजिक और पारिवारिक दबाव भी काफी रहता है। कई बार परिवार और समाज की ओर से समझौते के लिए दबाव डाला जाता है, लेकिन जब मामला हिंसा या प्रताड़ना का हो, तो महिला के पास कानूनी अधिकार होते हैं कि वह अपनी सुरक्षा और सम्मान के लिए ससुराल छोड़ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे विवादों का समाधान संवाद और कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से ही संभव है। अदालतें भी इस बात पर जोर देती हैं कि पति-पत्नी के बीच यदि सुलह संभव न हो, तो दोनों को स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार है।