हाल ही में धार्मिक कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महिलाओं को लेकर दिए गए विवादित बयान के कारण चर्चा में हैं। वृंदावन के गौरी गोपाल आश्रम में आयोजित कार्यक्रम में उनके कुछ ऐसे विचार सामने आए, जिनसे महिलाओं के प्रति नकारात्मक धारणा बनी। उन्होंने लड़कियों की शादी की उम्र और सामाजिक व्यवहार पर टिप्पणी की, जो बाद में सोशल मीडिया में वायरल हुई।
Tata stock prices- 68% बड़ा टाटा केमिकल्स का मुनाफा शेयर बाजार में हलचल, शेयर धारकों को फायदा?
वायरल वीडियो और विवाद की शुरुआत
किए गए बयान में उन्होंने कहा था कि लड़कियों की शादी 25 वर्ष से पहले हो जानी चाहिए और यदि नहीं हुई तो उनके “कई बॉयफ्रेंड” हो सकते हैं, जो उनके वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है। इसके अलावा उन्होंने सोशल मीडिया और आधुनिक जीवनशैली को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। इस बयान के बाद महिला संगठनों और आम जनता की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई और इसे महिलाओं के सम्मान पर हमला माना गया।
महिला संगठनों और समाज का तीखा विरोध
अनिरुद्धाचार्य के इस बयान के खिलाफ कई महिला अधिकार संगठनों ने विरोध जताया। मथुरा बार एसोसिएशन की महिला अधिवक्ताओं ने इसे संविधान विरोधी करार देते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की। इसके अलावा धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों ने भी इस टिप्पणी की निंदा की और इसे अस्वीकार्य बताया।
Best salwar suits for office- गर्ल्स को ऑफिस के लिए 4 ट्रेंडिंग सलवार-सूट, जो दिखे सबसे अलग!
सफाई और माफी का वीडियो संदेश
विवाद बढ़ने के बाद अनिरुद्धाचार्य ने सोशल मीडिया पर वीडियो संदेश जारी कर माफी मांगी। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य सभी महिलाओं को लेकर ऐसा बयान देना नहीं था। उन्होंने दावा किया कि उनके मूल कथन को गलत संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही उन्होंने महिलाओं के सम्मान की बात करते हुए माफी मांगने की बात कही।
विरोध के बावजूद सुलगती रही बहस
माफी के बाद भी विवाद शांत नहीं हुआ। सोशल मीडिया और महिला संगठनों ने कठोर प्रतिक्रिया जारी रखी। कई नेताओं ने ऐसे बयान को समाज और धार्मिक समुह के लिए शर्मनाक माना। महिलाओं के सम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा को लेकर बात लगातार उठती रही।
समाज में बहस के मायने
इस पूरे प्रकरण ने यह सवाल उठाए कि सार्वजनिक मंचों पर दिए गए बयानों का समाज और महिलाओं के प्रति सोच पर कितना प्रभाव पड़ता है। साथ ही महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक जिम्मेदारियों पर भी चर्चा हुई। महिला अधिकार समूहों की मांग है कि सामाजिक संवाद और चर्चा में संवेदनशीलता बरती जाए।