Bharat bandh- बुधवार को पूरे देश में भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिल सकता है। इस बंद का आह्वान 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने किया है, जिसमें बैंकिंग, इंश्योरेंस, पोस्टल सेवा, कोयला खनन, परिवहन और सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य विभागों के 25 करोड़ से अधिक कर्मचारियों के शामिल होने का अनुमान है। ट्रेड यूनियनों के अनुसार, यह हड़ताल सरकार की श्रम विरोधी, किसान विरोधी और कॉरपोरेट समर्थक नीतियों के विरोध में की जा रही है।
Bharat bandh- बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं पर असर
हड़ताल के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और सहकारी बैंकों में कामकाज प्रभावित हो सकता है। बैंक शाखाओं में सेवाएं, चेक क्लीयरेंस और ग्राहक सहायता जैसी सुविधाएं कई क्षेत्रों में बाधित हो सकती हैं। हालांकि, निजी क्षेत्र के कुछ बैंक खुले रह सकते हैं, लेकिन वहां भी सेवाएं सीमित रह सकती हैं।
डाक और बीमा सेवाओं में रुकावट
पोस्टल सेवाओं के बंद रहने से डाक वितरण और सरकारी सेवाओं पर असर पड़ सकता है। बीमा क्षेत्र में भी एलआईसी और अन्य कंपनियों के कार्यालय सामान्य रूप से कार्य नहीं करेंगे, जिससे ग्राहकों को असुविधा हो सकती है।
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Bharat bandh- परिवहन और कोयला खनन क्षेत्रों में ठहराव
राज्य परिवहन सेवाएं, सार्वजनिक बसें और कोयला खनन क्षेत्रों में भी हड़ताल का असर देखा जाएगा। कई राज्यों में बस सेवाएं आंशिक या पूरी तरह से बंद रह सकती हैं। कोयला खनन बेल्ट के कर्मचारी भी हड़ताल में शामिल होंगे, जिससे उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
शिक्षा और अन्य सार्वजनिक सेवाओं पर प्रभाव
शिक्षा क्षेत्र में भी असर देखने को मिल सकता है। शिक्षक संघों ने हड़ताल का समर्थन किया है, जिससे कई सरकारी और निजी स्कूल-कॉलेज बंद रह सकते हैं या उनमें उपस्थिति कम हो सकती है। सरकारी विभागों, फैक्ट्रियों और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में भी कर्मचारियों के काम पर न आने की संभावना है।
किसानों और ग्रामीण मजदूरों का समर्थन
इस बार भारत बंद को किसानों और ग्रामीण मजदूर संगठनों का भी समर्थन मिला है। संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक यूनियनों ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर प्रदर्शन करने की घोषणा की है। इन संगठनों का आरोप है कि सरकार की नीतियों से ग्रामीण संकट गहराता जा रहा है, बेरोजगारी बढ़ रही है और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।
विरोध के मुख्य मुद्दे और मांगें
ट्रेड यूनियनों ने सरकार को 17 सूत्रीय मांग पत्र सौंपा था, जिसमें श्रमिक अधिकारों की रक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र में नई भर्तियां, वेतन वृद्धि, चार नए श्रम संहिताओं की वापसी, निजीकरण और ठेका प्रथा का विरोध, और किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी मांगें शामिल हैं। उनका आरोप है कि सरकार ने इन मांगों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है और श्रमिक सम्मेलन भी पिछले दस वर्षों से नहीं बुलाया गया है।