राज्यसभा के मौजूदा मानसून सत्र के दौरान वित्त मंत्रालय की ओर से भारतीय नागरिकों को एक बड़ी राहत देते हुए बताया गया कि सरकार का 2,000 रुपये के यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) ट्रांजैक्शन पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाने का कोई इरादा नहीं है। इस विषय पर पूछे गए एक सवाल के दौरान सरकार का उत्तर देशभर के डिजिटल पेमेंट यूज़र्स के लिए राहतभरी खबर लेकर आया।
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डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की मजबूती से बढ़ी यूपीआई की लोकप्रियता
बीते कुछ वर्षों में भारत में डिजिटल भुगतान प्रणाली में तेजी से बदलाव आया है। 2016 की नोटबंदी के बाद से यूपीआई ने डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) द्वारा संचालित यूपीआई सिस्टम के जरिए आज गांव से लेकर शहर तक लोग आसानी से पैसे भेज-पाने लगे हैं। मार्च 2025 में यूपीआई ट्रांजैक्शन की संख्या 12 अरब से भी ज्यादा हो गई थी।
सरकार की नज़र में डिजिटल पेमेंट का महत्व
सरकार डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने पर लगातार काम कर रही है। बीते कुछ समय में डिजिटल पेमेंट को लेकर कई तरह की अफवाहें सामने आई थीं कि सम्भवतः अब बड़े ट्रांजैक्शन पर जीएसटी लगाया जा सकता है। वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी अफवाहों में कोई सच्चाई नहीं है। न ही सरकार की ऐसी कोई नीति है और न ही भविष्य में अभी इस प्रकार का कोई प्रस्ताव विचाराधीन है।
कारोबार और आम लोगों के लिए बड़ी राहत
छोटे दुकानदारों, व्यापारियों और आम नागरिकों के लिए यूपीआई सुविधाजनक और मुफ्त डिजिटल ट्रांजैक्शन का जरिया बन चुका है। वर्तमान में यूपीआई के जरिए पैसा भेजने या प्राप्त करने पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ता। अगर बड़े ट्रांजैक्शन पर जीएसटी लगाया जाता तो यह डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए बाधा बन सकता था। इसलिए, सरकार की ओर से स्पष्टता मिलने से कारोबारियों एवं यूजर्स को राहत मिली है।
यूपीआई ट्रांजैक्शन में पारदर्शिता और सुरक्षा
यूपीआई की सबसे बड़ी खासियत इसकी पारदर्शिता और सुरक्षा है। सभी यूपीआई ट्रांजैक्शन रियल टाइम में बैंक के सर्वर से होकर गुज़रते हैं जिससे फर्जीवाड़े की आशंका लगभग ना के बराबर रहती है। वित्त मंत्रालय के बयान से जाहिर होता है कि सरकार डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहित करना चाहती है, न कि उस पर बढ़ोतरी करके बाधा खड़ी करना