कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले के जंबरगट्टे गांव में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया है। यहां 45 वर्षीय महिला गीताम्मा की ‘भूत उतारने’ के नाम पर बेरहमी से पिटाई की गई, जिससे उसकी मौत हो गई। यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज में फैले अंधविश्वास की गहराई को भी उजागर करती है।
घटना की शुरुआत
स्थानीय लोगों के अनुसार, गीताम्मा बीते कुछ दिनों से बीमार थीं और घर में उदास रहती थीं। परिवार और पड़ोसियों के बीच चर्चा थी कि उन पर किसी ‘देवता’ या ‘भूत’ का साया है। इसी माहौल में 6 जुलाई की रात एक महिला उनके घर पहुंची और दावा किया कि वह गीताम्मा से भूत निकाल सकती है। गीताम्मा के बेटे संजय ने, मां के स्वास्थ्य के लिए, अनजाने में इस प्रक्रिया के लिए सहमति दे दी।
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‘भूत भगाने’ की क्रूरता
जिस रात यह घटना हुई, आरोपी महिला गीताम्मा को घर से करीब ढाई किलोमीटर दूर पुराने चौडम्मा मंदिर तक ले गई। रास्ते भर और मंदिर परिसर में उसने डंडे से गीताम्मा की बुरी तरह पिटाई की। ग्रामीणों के अनुसार, यह सिलसिला रात 9:30 बजे से लेकर तड़के 2:30 बजे तक चला। आरोपी बार-बार कहती रही कि ‘भूत’ अभी भी शरीर में है, इसलिए मारना जरूरी है। इस दौरान गीताम्मा की हालत लगातार बिगड़ती रही, लेकिन किसी ने हस्तक्षेप करने की हिम्मत नहीं की।
परिवार की बेबसी और गांव की चुप्पी
गीताम्मा के बेटे संजय ने बताया कि उन्होंने मां को बचाने की कोशिश की, लेकिन अंधविश्वास और सामाजिक दबाव के चलते वे ज्यादा कुछ नहीं कर सके। गांव में पहले भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं, लेकिन इस बार मामला जानलेवा साबित हुआ। स्थानीय नेताओं ने सुलह पंचायत बुलाने की कोशिश की, पर कोई हल नहीं निकला।
अस्पताल पहुंचने से पहले ही मृत्यु
घटना के बाद गंभीर रूप से घायल गीताम्मा को होलेहोन्नूर के सामुदायिक अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों के अनुसार, शरीर पर कई जगह गंभीर चोटें थीं, जो लगातार पिटाई का परिणाम थीं। यह स्पष्ट था कि ‘भूत भगाने’ के नाम पर की गई हिंसा ही मौत का कारण बनी।
पुलिस की तत्परता
मृतका के बेटे संजय की शिकायत पर होलेहोन्नूर पुलिस ने आरोपी महिला के खिलाफ मारपीट और हत्या का मामला दर्ज किया। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस अधीक्षक मिथुन कुमार ने घटनास्थल का दौरा किया और जांच के आदेश दिए। उन्होंने मीडिया को बताया कि आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और मामले में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो
इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें आरोपी महिला गीताम्मा को डंडे से पीटती नजर आ रही है। वीडियो सामने आने के बाद समाज में आक्रोश फैल गया है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आज के दौर में भी अंधविश्वास के नाम पर इस तरह की घटनाएं कैसे हो सकती हैं। कई सामाजिक संगठनों ने दोषियों को कड़ी सजा देने और समाज में जागरूकता फैलाने की मांग की है।
कानून और समाज
यह घटना भारत के उन हिस्सों की सच्चाई दिखाती है, जहां विज्ञान और शिक्षा के बावजूद अंधविश्वास आज भी लोगों की सोच पर हावी है। ‘भूत-प्रेत’, ‘जादू-टोना’ जैसी अवधारणाएं न केवल अशिक्षित, बल्कि कई बार शिक्षित वर्ग में भी गहरे पैठी हुई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक समाज में वैज्ञानिक सोच और जागरूकता नहीं बढ़ेगी, तब तक ऐसी घटनाएं रुकना मुश्किल है।
प्रशासन की जिम्मेदारी और समाज की भूमिका
इस मामले ने प्रशासन और समाज दोनों के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसे मामलों में त्वरित और सख्त कार्रवाई करे, ताकि दोषियों को कड़ा संदेश मिले। वहीं, समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाए और जरूरतमंदों को सही चिकित्सा और सलाह उपलब्ध कराए। स्कूलों और पंचायत स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
क्या बदल पाएंगे हम अपनी सोच?
गीताम्मा की मौत सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। यह घटना हर नागरिक से सवाल करती है—क्या हम अंधविश्वास के खिलाफ पर्याप्त जागरूक हैं? क्या हम अपने आसपास ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तैयार हैं? शायद, इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना अब और टालना नहीं चाहिए।