सिंगरौली जिले के एक सरकारी स्कूल में हाल ही में जो घटना सामने आई, उसने न केवल शिक्षा विभाग को, बल्कि पूरे समाज को चौंका दिया। सरकारी योजनाओं के तहत छात्रों को बांटी जाने वाली 23 साइकिलों की चोरी का मामला सामने आया है, और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस चोरी का आरोप खुद स्कूल के प्रिंसिपल पर लगा है।
सरकारी योजना और बच्चों के सपनों पर ग्रहण
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा छात्रों को स्कूल आने-जाने में सुविधा देने के लिए साइकिल वितरण योजना चलाई जाती है। इसका उद्देश्य ग्रामीण और दूरदराज़ क्षेत्रों के विद्यार्थियों को शिक्षा से जोड़े रखना है। लेकिन जब इन्हीं साइकिलों को चुराने का आरोप स्कूल के मुखिया पर लगे, तो सवाल उठना लाजिमी है कि बच्चों के सपनों में सेंध लगाने वाले कौन हैं?
पत्नी की हत्या के मामले में हाईकोर्ट ने दोषी पती को किया बरी सजा खारिज
चोरी का खुलासा
तीन महीने पहले शासकीय हाई स्कूल खटाई में आईं साइकिलों में से 23 अचानक गायब हो गईं। इन साइकिलों को खैरा गांव के एक व्यक्ति के घर में छिपाकर रखा गया था। सूत्रों के अनुसार, इन साइकिलों को बाजार में बेचने की योजना थी, ताकि अवैध रूप से पैसे कमाए जा सकें। पुलिस को जब इसकी भनक लगी, तो छापेमारी कर सभी साइकिलें बरामद कर ली गईं। इस कार्रवाई ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी।
शिक्षा विभाग में हड़कंप, पुलिस जांच शुरू
जैसे ही चोरी का मामला उजागर हुआ, शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया। जिला शिक्षा अधिकारी एसबी सिंह ने साफ कहा कि विभागीय जांच के बाद दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी। पुलिस ने भी मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि जांच में कौन-कौन दोषी पाया जाता है और उनके खिलाफ क्या कदम उठाए जाते हैं।
प्रिंसिपल पर संदेह की सुई
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर स्कूल के प्रिंसिपल जयकांत चौधरी पर ही संदेह क्यों गहराया? सूत्र बताते हैं कि साइकिलों को स्कूल से हटवाकर गांव में छुपाने का निर्णय उन्हीं का था। हालांकि, जांच पूरी होने तक किसी को दोषी ठहराना उचित नहीं, लेकिन इतने बड़े घोटाले में प्रिंसिपल की भूमिका को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। विभागीय जांच से ही सच्चाई सामने आएगी।
प्रदेश में पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
यह पहली बार नहीं है जब बच्चों को बांटने वाली सामग्री चोरी हुई हो। इससे पहले भी प्रदेश के अन्य जिलों में किताबें, ड्रेस और अन्य शैक्षिक सामग्री चोरी होने के मामले सामने आ चुके हैं। हर बार जांच होती है, दोषियों पर कार्रवाई होती है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसी घटनाएं बार-बार क्यों दोहराई जाती हैं? क्या सरकारी योजनाओं का लाभ वाकई जरूरतमंद बच्चों तक पहुंच रहा है?
बच्चों के अधिकारों पर चोट
इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए समाज, प्रशासन और शिक्षा विभाग को कितनी सतर्कता बरतनी चाहिए। जब सरकारी योजनाओं का लाभ बच्चों तक नहीं पहुंचता, तो इसका असर उनकी पढ़ाई और भविष्य दोनों पर पड़ता है। यह एक सामाजिक अपराध है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
जांच और पारदर्शिता
शिक्षा विभाग और पुलिस की जांच से उम्मीद है कि दोषियों को सजा मिलेगी, लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कोई प्रभावी व्यवस्था बनेगी? क्या स्कूलों में सामग्री के वितरण और रखरखाव में पारदर्शिता लाई जाएगी? क्या जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय होगी? ये सवाल सिर्फ सिंगरौली नहीं, पूरे प्रदेश के लिए अहम हैं।