Tulsi Vivah festival significance and rituals- कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पूरे भारत में तुलसी विवाह का पावन पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह शुभ अवसर 13 नवंबर को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ विधि-विधानपूर्वक किया जाता है। यह पर्व दीपावली के बाद शुरू होने वाले विवाह सीजन की शुरुआत मानी जाती है। हर वर्ष इस दिन मंदिरों से लेकर घरों तक भक्तगण विशेष पूजा-अनुष्ठान करते हैं और तुलसी-शालिग्राम विवाह घर-घर में संपन्न किया जाता है।
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पौराणिक कथा से जुड़ा है यह शुभ पर्व
पुराणों के अनुसार, तुलसी देवी भगवान विष्णु की अत्यंत प्रिय हैं। कथा के अनुसार, एक बार असुरराज जालंधर की पत्नी वृंदा ने भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था कि उनका पति तब तक अजेय रहेगा जब तक वह अपने पतिव्रता धर्म का पालन करेगी। देवताओं की सहायता के लिए विष्णु ने जालंधर का वध करने हेतु स्वयं उसका रूप धारण किया, जिससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया। भगवान विष्णु ने उन्हें वचन दिया कि हर वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वादशी को उनका विवाह शालिग्राम से होगा। तभी से इस पर्व को तुलसी विवाह कहा जाता है।
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पूजन विधि और धार्मिक महत्व
तुलसी विवाह का आयोजन प्रायः शाम के समय किया जाता है। इस दिन तुलसी चौरा को साफ करके रंगोली बनाई जाती है और उस पर मंडप सजाया जाता है। तुलसी माता को दुल्हन की तरह सजाया जाता है—उनके ऊपर लाल चुनरी, श्रृंगार की वस्तुएं और कागज के आभूषण लगाए जाते हैं। भगवान शालिग्राम या विष्णु की मूर्ति को दूल्हे के रूप में तैयार किया जाता है। दोनों की मूर्तियों को एक ही मंडप में बैठाकर विधिवत मंत्रोच्चार के साथ विवाह संपन्न कराया जाता है। इस पूजा में केले के पत्ते, सूखा नारियल, दीपक, फल और पंचामृत का विशेष महत्व होता है। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद वितरण और भक्ति गीतों का आयोजन किया जाता है।







