सतना-मध्यप्रदेश के सतना जिले से हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने प्रदेश की पुलिस व्यवस्था और उसकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक कुख्यात अपराधी, प्रमोद कुशवाहा, हत्या और डकैती जैसे जघन्य अपराधों में आजीवन कारावास की सजा पाकर भी पुलिस रिकॉर्ड में 13 साल तक फरार बना रहा, जबकि वह इसी दौरान विभिन्न मामलों में जेल में बंद था। यह घटनाक्रम न केवल पुलिस की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि न्याय व्यवस्था की जटिलताओं को भी सामने लाता है।व पुलिस की सक्रियत्ता पर भी सवाल उठ रहे हैं|
13 साल तक तामील नहीं हुआ वारंट
यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब पता चलता है कि प्रमोद कुशवाहा के खिलाफ जारी वारंट को पुलिस 13 वर्षों तक तामील नहीं कर सकी। जबकि इस दौरान प्रमोद अन्य मामलों में गिरफ्तार होकर जेल में ही था, लेकिन संबंधित मामले में पुलिस ने कभी भी वारंट को जेल प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया। यह चूक केवल एक अधिकारी या थाने की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
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अपराधी का आपराधिक इतिहास
प्रमोद कुशवाहा, जो मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में कुख्यात है, डकैती, हत्या और अपहरण जैसी 23 संगीन वारदातों को अंजाम दे चुका है। वर्ष 2006 में सतना जिले के खैर चितहरा गांव में हुई डकैती और हत्या की घटना ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी थी। 28 मई 2006 की रात प्रमोद और उसके चार साथी रामविशाल चौधरी के घर में घुसे, उनके बेटे बसंत को गोली मार दी और परिवार को बुरी तरह पीटा। बदमाश 80 हजार रुपये नकद और जेवरात लूटकर फरार हो गए थे।
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न्यायालय का फैसला और पुलिस की चूक
इस सनसनीखेज वारदात के बाद, न्यायालय ने 19 जुलाई 2011 को प्रमोद और उसके चार साथियों को डकैती और अपहरण प्रभावित क्षेत्र अधिनियम के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लेकिन फैसले के समय प्रमोद फरार था। वर्ष 2013 में सतना पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी दिखाई, परंतु मझगवां पुलिस ने हत्या के मामले में वारंट कभी भी जेल में प्रस्तुत नहीं किया। यही वजह रही कि पुलिस रिकॉर्ड में प्रमोद लगातार फरार ही बना रहा, जबकि अन्य दोषियों को पुलिस ने जेल भेज दिया था।
जेल से रिहाई और फिर गायब
प्रमोद कुशवाहा को सितंबर 2013 में पुलिस ने गिरफ्तार किया था, जिसके बाद वह लगातार जेल में बंद रहा। जेल में झगड़े के कारण 22 अप्रैल 2025 को उसे सतना से भोपाल जेल स्थानांतरित किया गया। पुराने मामलों में रिहाई मिलने के बाद 9 मई 2025 को वह भोपाल जेल से छूटकर सतना पहुंचा और फिर गायब हो गया। आश्चर्यजनक यह है कि इतने वर्षों तक जेल में रहने के बावजूद पुलिस रिकॉर्ड में वह फरार ही रहा।
अन्य अपराधों में भी दोषी
प्रमोद का आपराधिक इतिहास केवल एक या दो मामलों तक सीमित नहीं है। 2013 में उसने अपने साथियों के साथ मिलकर मारुतिनगर निवासी छात्र सुधीर कुमार पांडेय का अपहरण कर हत्या कर दी थी। इस मामले में भी उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इसके अलावा, वह अपने ही गांव के चूड़ामन प्यासी की हत्या के मामले में भी आरोपी रहा है। सतना और कटनी के विभिन्न थानों में उसके खिलाफ कई मामले दर्ज हैं।
पुलिस की स्वीकारोक्ति और सवाल
मझगवां थाने के प्रभारी आदित्य नारायण धुर्वे ने भी स्वीकार किया है कि प्रमोद काछी को जिस मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई, उसमें वह अब भी पुलिस रिकॉर्ड में फरार है। यह स्वीकारोक्ति पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली और निगरानी व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करती है। सवाल यह है कि जब एक अपराधी वर्षों तक जेल में बंद रहा, तो पुलिस ने उसके खिलाफ जारी वारंट को तामील क्यों नहीं किया? क्या यह महज लापरवाही है या सिस्टम में कहीं गहरी खामी है?
न्याय व्यवस्था पर भी उठे सवाल
यह मामला केवल पुलिस की लापरवाही तक सीमित नहीं है, बल्कि न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता और प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े करता है। यदि पुलिस और जेल प्रशासन के बीच समन्वय बेहतर होता, तो शायद यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती। यह घटना बताती है कि केवल कानून बनाना या अपराधियों को सजा सुनाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसके क्रियान्वयन और निगरानी की भी उतनी ही आवश्यकता है।
समाज में भरोसे की चुनौती
ऐसे मामलों से समाज में पुलिस और न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा डगमगाने लगता है। आम नागरिकों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब एक कुख्यात अपराधी जेल में होते हुए भी फरार बना रह सकता है, तो आम मामलों में न्याय की उम्मीद कैसे की जाए? यह घटना व्यवस्था में सुधार और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
आगे की राह
इस घटना ने प्रशासनिक और पुलिस महकमे में हलचल मचा दी है। उम्मीद की जा रही है कि अब इस मामले की गहन जांच होगी और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, पुलिस और जेल प्रशासन के बीच समन्वय और निगरानी व्यवस्था को भी और मजबूत किया जाएगा, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही दोहराई न जाए।