भोपाल के आदर्श नगर की तंग गलियों में एक साधारण सा कमरा है, जिसमें राजेश विश्वकर्मा अपनी टूटी-बिखरी ज़िंदगी के टुकड़े फिर से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी आवाज़ में अब भी उस अन्याय और सदमे की झलक साफ नजर आती है, जिससे वे पिछले तेरह महीने में गुज़रे हैं। रोज़मज़दूरी करने वाले राजेश का न कोई पुश्तैनी घर है, न माता-पिता और न ही किसी कानूनी अधिकार का ज्ञान। उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने अपने पड़ोस की एक बीमार महिला की मदद की थी।
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बीमार महिला की मदद करने की बड़ी कीमत
घटना जून 2024 की है जब मोहल्ले की एक महिला ने राजेश से मदद मांगी। महिला की तबीयत बेहद खराब थी, राजेश ने उसे उठाकर अस्पताल पहुंचाया और फिर अपने काम पर निकल गए। उसी शाम महिला की असमय मृत्यु हो गई। पुलिस ने अगले ही दिन राजेश को पूछताछ के नाम पर उठा लिया। लगातार नौ दिन तक पुलिस स्टेशन में रखा गया, न बात करने दी गई और न अपनी बात रखने का मौका मिला। परिवार तक सूचना पहुंची तो वे भी असहाय थे क्योकि आर्थिक और सामाजिक ताकत दोनों की कमी थी।
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निर्दोष होने के बावजूद जेल की सजा
पुलिस और जांच एजेंसियों की लापरवाही से राजेश पर हत्या का आरोप लगा और उन्हें जेल भेज दिया गया। किराए के कमरे को पुलिस ने सील कर दिया, जिससे घर भी छिन गया। एक साल से भी ज्यादा—कुल 395 दिन—राजेश बिना किसी दोष के जेल में रहे। उनके पास वकील करने के पैसे नहीं थे इसलिए अदालत ने मुफ्त विधिक सहायता उपलब्ध करवाई। न्यायालय ने बाद में राजेश को निर्दोष घोषित कर दिया, लेकिन जीवन में आई दरारें अब तक जस की तस हैं।
अदालत की रिहाई, समाज की बेरुखी
अदालत ने सभी साक्ष्यों के अभाव में राजेश को पूरी तरह बरी कर दिया। रिपोर्ट में साफ था कि महिला की मौत बीमारी के कारण हुई थी। न तो अस्पताल का सीसीटीवी चेक किया गया, न पोस्टमार्टम और कपड़ों से संबंधित विसंगतियों की जांच हुई। बावजूद इसके पुलिस की लापरवाही के चलते राजेश को एक निर्दोष नागरिक होकर भी हैवानियत का सामना करना पड़ा। आज हालत यह है कि रिहाई के बाद भी किसी के घर काम नहीं मिलता—लोग कहते हैं कि जेल से आया है।
जेल में बंद निर्दोषों की बढ़ती तादाद
राजेश अकेली मिसाल नहीं हैं। जेल में लंबित विचाराधीन कैदियों की तादाद लगातार बढ़ रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में वर्ष 2025 तक 6,185 विचाराधीन कैदी एक साल से ज्यादा समय से बिना अपराध साबित हुए जेल में बंद हैं। राज्य की जेलें निर्धारित क्षमता से 164% भरी हैं, और औसत सालाना खर्च भी लगातार बढ़ रहा है।