सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि उन राज्यपालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने चुनी हुई सरकारों के कामकाज में अनावश्यक दखल दिया हो या दे रहे हों। वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि राज्यपालों को अपनी राजनीतिक पार्टी के नेताओं से जोड़कर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस नरीमन ने यह भी सुझाव दिया कि ऐसी परंपरा स्थापित हो कि ऐसा कोई व्यक्ति राज्यपाल न बने, जो संवैधानिक पद की मर्यादा का उल्लंघन करे।
राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका
जस्टिस नरीमन ने राज्यपालों की संवैधानिक शपथ और उनकी भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि उन्हें संविधान की मर्यादा के अंतर्गत काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कोई राज्यपाल संवैधानिक अदालतों द्वारा दोषी पाया जाता है तो उसे तुरंत पद से हटा देना चाहिए। न्यायिक या संवैधानिक अदालतें ऐसी कार्रवाई कर सकती हैं, या केंद्र सरकार को इस दिशा में कदम उठाने चाहिए।
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राज्यपाल की मनमानी प्रतिबंधित हो
सुप्रीम कोर्ट के अन्य बयानों और सुनवाई के अनुसार, यदि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोकते रहें, तो इससे चुनी हुई सरकारों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई समेत न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा ने स्पष्ट किया है कि राज्यपालों का यह अधिकार सीमित होना चाहिए ताकि लोकतांत्रिक सरकार स्वतंत्र रूप से कार्य कर सके। न्यायालय ने कहा है कि राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए एक समयसीमा में बंधना चाहिए ताकि उनकी निर्णय प्रक्रिया में देरी न हो।
 
 
 







