Chikankari : चिकनकारी सुई और धागों से बने टांकों और जालियों की एक बड़ी और पेचीदा मगर बेहद खूबसूरत दुनिया है। बेल बूटियों की इसी खूबसूरती मे हर किस का मन उलझ जाता है। अपनी इसी खासियत के वजह से ही चिकनकारी का ये हुनर सदियों से अपनी पहचान बनाए हुए है। चिकनकारी सिर्फ एक कढ़ाई नहीं बल्कि संस्कृति है जो लखनऊ के नवाबों की नजाकत और तहज़ीब बयां करती है।
चिकनकारी क्या है ? (What is Chikankari?)
कढाई और कशीदाकारी की एक प्रसिद्ध शैली का नाम है चिकनकारी। यह लखनऊ की कशीदाकारी का बेहतरीन नमूना है। मुगलकाल से शुरू हुआ चिकनकारी का शानदार सफर आज भी बदस्तूर जारी है। चिकनकारी का एक खूबसूरत आर्ट पीस लंदन के रायल अल्बर्ट म्यूजियम में भी है, जो दुनिया भर के लोगों को अपनी दास्तां सुना रहा है। चिकन शब्द फारसी भाषा के चाकिन से निकलकर आया है। चाकिन का मतलब है, कशीदाकारी या बेल-बूटे उभारना। ताजमहल और लालकिले की तरह ही चिकनकारी भी मुगलिया तहजीब की एक अनमोल विरासत है।
चिकनकारी कैसे की जाती है ? (How is Chikankari done?)
महीन कपड़े पर सुई और धागे से तरह तरह के टांकों द्वारा की गई हाथ की कारीगरी ही लखनऊ की चिकनकारी कहलाती है। इस कारीगरी मे लगभग 40 तरह के टांके और जालियां होती हैं, जैसे मुर्री, फनदा, कांटा, तेपची, पंखड़ी, लौंग जंजीरा, राहत बंगला जाली, मुंदराजी जाली, सिद्दौर जाली, बुलबुल चश्म जाली, बखिया ये कुछ जाने माने बेहद खूबसूरत टांके हैं, पर सबसे मुश्किल और कीमती टांका जो है, उसका नाम है, नुकीली मुर्री।
कच्चे सूत के तीन या पांच तारों को लेकर बारीक सुई से टांके लगाए जाते हैं। जिस कपड़े पर चिकनकारी की जाती है, पहले उस पर बेल बूटे छापे जाते हैं। इसके लिए लकड़ी के टुकड़ों पर मनचाहे बेलबूटों के नमूने खोद कर इन नमूनों को कच्चे रंगों से कपड़े पर छाप लिया जाता है। कपड़े पर छपे इन नमूनों के मुताबिक चिकनकारी की जाती है। इसके बाद इन्हें कुछ खास धोबियों से धुलवाया जाता है, जो कपड़े पर लगा कच्चा रंग हटा देते हैं, साथ ही काढ़ी गई कच्चे सूत की कलियों को भी उजला कर देते हैं।