भारत की सरकारी तेल कंपनियों ने पिछले सप्ताह रूस से कच्चे तेल की खरीद पूरी तरह से रोक दी है। यह फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कड़ी चेतावनी और रूस से मिलने वाली छूट में कमी के कारण लिया गया है। अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर उच्च टैरिफ लगाने का प्रावधान किया है, जिससे भारत समेत कई देशों की रणनीतियों में बदलाव हुआ है।
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अमेरिकी सख्ती और ट्रंप की धमकी
अमेरिका ने कहा है कि यदि रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान नहीं निकला, तो रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। घोषणा के बाद भारत की सरकारी तेल कंपनियों ने तुरंत रूसी तेल खरीदना बंद कर दिया है। इस फैसले का प्रभाव 10 से 12 दिनों के भीतर तेल आपूर्ति पर दिख सकता है।
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बाजार में बढ़ती अनिश्चितता
भारत रूस से करीब 35 प्रतिशत अपने तेल की आपूर्ति करता है, जिसमें से अधिकांश हिस्सेदारी सरकारी कंपनियों की है। इन कंपनियों ने अब नए स्रोतों जैसे मध्य पूर्व और पश्चिम अफ्रीका से तेल खरीद शुरू कर दिया है। निजी कंपनियां अभी भी रूस से तेल खरीद जारी रखे हुए हैं, लेकिन सरकारी कंपनियों की खरीद रुकना वैश्विक ऊर्जा बाजार में उत्सुकता बढ़ा रहा है।
पश्चिमी प्रतिबंधों का असर
यूरोपीय संघ ने भी रूसी तेल उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए हैं। भारत को ऐसे वित्तीय विकल्पों की तलाश करनी पड़ रही है, जहां से बिना प्रतिबंध के तेल प्राप्त किया जा सके। अंतरराष्ट्रीय दबाव और वित्तीय सीमाओं ने भारतीय रिफाइनरियों के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं।
वैश्विक बाजार में उथल-पुथल
विशेषज्ञों के अनुसार, रूस पर प्रतिबंधों से वैश्विक तेल बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है। इससे तेल की कीमतों में तेजी आ सकती है और भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं को अपनी ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखने में कठिनाई हो सकती है। भारतीय तेल कंपनियां नए आपूर्तिकर्ताओं की खोज में जुटी हैं ताकि घरेलू मांग पूरी हो सके।
भविष्य की राह पर नजरें
आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत रूस से तेल खरीदना फिर से शुरू करता है या फिर नए स्रोतों पर निर्भर रहता है। वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव के कारण तेल बाजार में उतार-चढ़ाव जारी रहने की संभावना है। इस परिस्थिति का सीधा असर भारतीय उपभोक्ताओं पर भी पड़ सकता है।
 
 
 







