Premanand Maharaj’s teachings on foot touching- वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में अपने प्रवचन में पैर छूने की प्रथा और उससे जुड़ी शंकाओं पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए हैं। महाराज ने बताया कि हिंदू धर्म और संस्कारों में बड़ों के पैर छूना सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इससे यह दर्शाया जाता है कि सामने वाला व्यक्ति जीवन अनुभव और ज्ञान में बड़ा है। पैर छूना केवल एक बाहरी क्रिया नहीं, बल्कि आंतरिक श्रद्धा और भक्तिभाव का परिचायक होता है।
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क्या किसी के पैर छूने से पुण्य समाप्त हो जाता है?
प्रेमानंद महाराज ने एक भक्त के सवाल के जवाब में यह स्पष्ट किया है कि किसी से पैर छूने से पुण्य समाप्त नहीं होता। उन्होंने तर्क दिया कि यदि हम स्वयं पैर छूने के इच्छुक नहीं हैं और जिसे हमारे पैर छूने की आवश्यकता है, हमने पहले ही उसका सम्मान कर लिया हो तो हमारे पुण्य पर इसका कोई विपरीत असर नहीं होगा। पैर छूना और प्रणाम करना एक समान माना जाता है। इसके अलावा, अगर मन में अहंकार या श्रेष्ठ होने की भावना आ जाए तो ही भार्गवता (भजन) में हानि होती है। इसलिए पुण्य का नुकसान मन की स्थिति पर निर्भर करता है, न कि मात्र बाहरी क्रिया पर।
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किन लोगों के पैर नहीं छूने चाहिए?
प्रेमानंद महाराज ने साफ किया है कि हिंदू धर्म के नियमों के अनुसार कुछ विशेष लोगों के पैर छूना वर्जित होता है। जैसे कि दामाद को अपने ससुर के पैर नहीं छूने चाहिए क्योंकि इससे पुराने धार्मिक कथा और रीति-रिवाजों का पालन होता है। इसी प्रकार मामा, कुवारी कन्याएं, मृत व्यक्ति या मंदिर के अंदर किसी के भी पैर छूना उचित नहीं माना जाता। इन नियमों के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ये परंपराएं लोगों को धार्मिक मर्यादा और सामाजिक पूरकता के साथ चलने के लिए मार्गदर्शन देती हैं।







